श्रीदेव सुमन (25 मई, 1916 – 25 जुलाई, 1944) टिहरी रियासत की राजशाही के विरुद्ध विद्रोह कर बलिदान देने वाले भारत के अमर स्वतन्त्रता सेनानी थे।
बचपन
श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले की बमुण्ड पट्टी के ग्राम जौल में १२ मई, १९१५ को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरिराम बड़ोनी और माता जी का नाम श्रीमती तारा देवीथा।श्री देव सुमन के बचपन का नाम श्रीदत्त बडोनी था। इनके पिता श्री हरिराम बडोनी जी अपने इलाके के लोकप्रिय वैद्य थे, १९१९ में जब क्षेत्र में हैजे का प्रकोप हुआ तो उन्होंने अपनी परवाह किये बिना रोगियों की अथाह सेवा की, जिसके फलस्वरुप वे ३६ वर्ष की अल्पायु में स्वयं भी हैजे के शिकार हो गये। लेकिन दृढ़निश्चयी साध्वीमाता ने धैर्य के साथ बच्चों का उचित पालन-पोषण किया और शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबन्ध भी किया। तथ्य यह है कि उन्होंने अपने पिता से लोक सेवा और माता से दृढनिश्चय के संस्कार पैतृक रुप में प्राप्त किये थे।
शिक्षा
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव और चम्बाखाल में हुई और १९३१ में टिहरी से हिन्दी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने विद्यार्थी जीवन में १९३० में जब यह किसी काम से देहरादून गये थे तो सत्याग्रही जत्थों को देखकर वे उनमें शामिल हो गये, इनको १४-१५ दिन की जेल हुई और कुछ बेंतों की सजा देकर छोड़ दिया गया। सन १९३१ में ये देहरादून गये और वहां नेशनल हिन्दू स्कूल में अध्यापकी करने लगे, साथ ही साथ अध्ययन भी करते रहे। यहां से यह कुछ दिनों के लिये लाहौर भी गये और उसके बाद दिल्ली आ गये। पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने ’रत्न’ ’भूषण’ और ’प्रभाकर’ परीक्षायें उत्तीर्ण की फिर हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ’विशारद’ और ’साहित्य रत्न’ की परीक्षायें भी उत्तीर्ण कीं।